संवाददाता जितेंद्र कुमार बस्ती यू पी
इस चार रोटी के लिए रेलवे लाइन पर 15 , 16 लोगों की जान चली गई पूरे देश में अलग-अलग राज्यों में करोड़ों प्रवासी मजदूर लॉक डाउन के दौरान फंसे हुए हैं इंसान इन्हीं चार रोटियों के कारण एक दूसरे का गला घोट देता है एक दूसरे से झूठ बोलता है एक दूसरे का धन संपत्ति बेईमानी कर लेता है इन्हीं रोटियों के लिए गरीबों का शोषण किया जाता है फर्क सिर्फ इतना होता है कि जो लोग गरीबों का शोषण करते हैं वह लोग इन रोटियों पर मक्खन लगाकर इसे अच्छे स्वाद के साथ खा सकें इसलिए शोषण करते हैं जिस गरीब मजदूर का शोषण होता है उसके लिए चटनी और यही चार रोटी काफी है घर परिवार के लिए भी यही चार रोटी का इंतजाम हर इंसान करता है लेकिन यही चार रोटियों की कीमत अलग अलग पैसों से तो ली जाती बाजार में खड़ी एक बेबस अबला नारी यही चार रोटियों के लिए अपने जिस्म का सौदा कर देती है लेकिन इस मतलबी संसार में कोई एक इंसान सामने नहीं आता है कि बिना किसी मतलब के आओ चार रोटियां हम तुम्हें खिलाते हैं जो प्रवासी मजदूर बाहर गए हुए थे कमाने के लिए कि दो पैसा कमाएंगे अपनी बीवी बच्चों के लिए अपने परिवार के लिए यही चार रोटी का प्रबंध उन्हीं पैसों से हो सकेगा इस रेलवे की पटरी पर जिस्म के टुकड़े हो गए लेकिन चार रोटियां वहीं के वहीं पड़ी रह गई आज कीमत इन चार रोटियों का वक्त ने समझा दिया इंसान के साथ इंसानियत से पेश आएं क्योंकि सांसे रुक जाने के बाद जिस्म का कोई सौदागर नहीं होता हजारों गुनाह करने वाला शरीर बेकार हो जाती है और मिट्टी में तब्दील हो जाती है गुनहगार सोचता है मेरी उम्र लंबी है लेकिन नहीं दोस्तों जिंदगी बड़ी छोटी है कब और किस मोड़ पर आपका साथ छोड़ दे यह कुछ नहीं कहा जा सकता है इंसान के साथ कुछ जाता नहीं है थोड़ा पुण्य कमाओ इंसान के साथ अच्छा बर्ताव करो किसी की मजबूरी का फायदा ना उठाओ और ऊपर वाले से दुआ करो की इन चार रोटियों की कीमत हर व्यक्ति समझ सके।
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