वरिष्ठ संवाददाता आईं सी पी एन सिंह सोलंकी
गोरखपुर समाचार:-
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व अंग्रेजी शासन में' सरकारी विभागों 'में कर्मचारी- यूनियन अथवा फैक्ट्रियों में मजदूर यूनियन नहीं होता था जिसका लाभ अंग्रेज उठाते थे तथा भ्रष्टाचार करते हुए भारत का धन लूटकर यू.के./ इंग्लैंड का खजाना भर रहे थे। इसी प्रकार फैक्ट्रियों में भी मजदूर यूनियन न होने के कारण फैक्ट्री /मिल मालिक मजदूरों का श्रम शोषण करते हुए मजदूरों को कम वेतन /सुविधा देकर अधिक काम लेते थे जिसका कमीशन अंग्रेजों को देते थे। इस प्रकार नीरीह फैक्ट्री /मिल मजदूर अत्यंत कम/ अनुचित मजदूरी पर बिना किसी सुविधा के अपने आंखों पर पट्टी बांधकर कोल्हू के बैल की तरह निरंतर काम करता था। उचित श्रम कानून एवं वेतन के अभाव में मजदूर एवं उसका परिवार भूखा/ अर्धनग्न ,अशिक्षित रहता था उस समय की स्थिति 'भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र' के शब्दों में निम्नानुसार था-
खानो को मिलता दूध भात भूखे बालक अकुलाते हैं ।
मां की हड्डी से ठिठुर -ठिठुर जाड़ो की रात बिताते हैं ।।
युवती की लज्जा बसन बेच अब ब्याज चुकाए जाते हैं।
मालिक तब यह तेल- फुलेला पर पानी सा द्रव्य बहाते हैं।।
सरकारी विभागों में कर्मचारियों को इतना कम वेतन मिलता था कि तब एक कविता प्रचलित थी जो निम्न थी-
करे नौकरी दुई जनी खाय।
लरिके होय ननिअउरे जाय।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनी सरकारों ने "कर्मचारियों यूनियनों" को मान्यता दिया "पदाधिकारियों" को निर्भयता प्रदान करने की दृष्टि से 'स्थानांतरण में संरक्षण' एवं अन्य सुविधाएं दिया जिससे वे अधिकारियों/ सरकारों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्भय होकर आवाज उठा सके जिससे भ्रष्टाचार प्राथमिक स्तर पर ही रोका जा सके। "नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत" के अनुसार कर्मचारी यूनियनों को नोटिस देने एवं 6 सप्ताह के अंदर समुचित मांगों के पूर्ण न होने पर हड़ताल का अधिकार दिया। तत्समय सरकारों को निम्न अवधारणा थी।
निंदक नियरे राखिए,आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
अर्थात कर्मचारी यूनियन सरकारी विभागों मेें भ्रष्टाचार रोकने का टूल था।
कर्मचारी/ मजदूर यूनियनों के पदाधिकारियों को धमकी दिया जाना। ऐस्मा लगाकर पूर्व से दिए गये अधिकारों को छीनना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 एवं नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। एवं अघोषित आपातकाल की कार्यवाही है।
प्रदेश के अधिकारियों ने समस्त कर्मचारियों का 3 दिन का वेतन बिना उनकी सहमति पत्र के काटकर रुपया 203004348 का चेक मुख्यमंत्री को सौंप दिया जबकि 1 मई 2020 को मजदूर दिवस पर मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक घोषणा कर बताया कि किसी कर्मचारी का वेतन नहीं काटा गया है ,फिर उन्होंने किस प्रकार कर्मचारियों के 3 दिन के वेतन रुपया 203004348 एक चेक स्वीकारा?
70 सालों का रोना रोने वालों ने श्रम कानूनों का परिवर्तन कर ऐस्मा लगाकर आपात काल लगा दिया जिससे कर्मचारी उपरोक्त 3 दिन के कटे वेतन एवं फ्रीज किए गए डी.ए. तथा समाप्त किए गए भत्तो की मांग न कर सके ।70 सालों में उपरोक्त पहली बार हो रहा है कि जब अंग्रेजों के नियमों को पुनः लगाने का प्रयास हो रहा है।
ऐस्मा लगाना तथा श्रम कानूनों में परिवर्तन करना अंग्रेजी मानसिकता है जिससे सरकार पूंजीपतियों को कम धनराशि में अधिक काम मजदूरों से दिलवा सके। यह स्थिति इमरजेंसी जैसी ही है।
जब मीडिया से घोषणा की जाती है कि करोना से बचने के लिए लोग अपने-अपने घरों में रहे तब सरकारी कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना ग्रस्त रोगियों के बीच जाकर राहत कार्य कर रहा है जिसके आधार पर सरकार कोरोना से युद्ध जीतने का ढिंढोरा पीट रही है । 1 मई 2020 को मुख्यमंत्री द्वारा टीवी पर घोषणा किये कि अप्रैल 2020 का वेतन अपने 1600000 कर्मचारियों का बिना कटौती के दे दिया है तथा 8 मई को 3 दिन के वेतन रुपया ₹203004348 का चेक पर्याप्त
करना कथनी एवं करनी में विसंगति है तथा भूखों से भोजन एवं नंगों से उनका वस्तु छीनना ही है। कर्मचारियों का डी.ए. डेढ़ सालों तक रोक लेना तथा भत्तो को समाप्त कर ऐस्मा लगाकर शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने से पूर्व ही कुचलने की अंग्रेजी मानसिकता है एवं कोरोना वारियर्स के हितों पर कुठाराघात है।
Comments
Post a Comment