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किसान आन्दोलन पर सरकार मौन क्यों ?


नीरज कुमार द्विवेदी गन्नीपुर-श्रृंगीनारी

बस्ती-उत्तरप्रदेश

       देश के अन्नदाता जिन्हें अपने कृषि क्षेत्रों में होना चाहिए वे आज सड़कों पर बैठकर आन्दोलन कर रहे हैं। हर गाँव-गली, नुक्कड़, शहर में आज बस एक ही विषय पर चर्चाएं जारी मिलती हैं कि किसान आन्दोलन खत्म क्यों नहीं हो रहा है ? हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, पूर्णतः सत्य है। लेकिन दोनों पहलुओं की परख कर आगे बढ़ने में बुराई क्या है ? किसानों से स्तरीय वार्तालाप कर उन्हें वापस भेजना भी सरकार का एक अहम कार्य है। किसान हमारे देश की रीढ़ की हड्डी हैं, उनकी निगेहबानी देश का कर्तव्य है। यदि वे कहीं से असुरक्षित महसूस होते हैं तो उन्हें पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराई जाय। यदि वे आन्दोलन में किसी मानसिक विचारों से उद्वेलित हो गए हों, किसी मानसिक वेदना के शिकार हो गए हों तथापि उनकी हर प्रकार से सुरक्षा देश का कर्तव्य है। यह सत्य है कि ताली एक हाथ से नहीं दोनों हाथों से ही बजती है लेकिन यदि दूसरे हाथ से ताली नहीं बजाई जा रही है तो यह भी देखने की आवश्यकता है कि कहीं उस हाथ को पीछे से किसी ने पकड़ तो नहीं रखा है ? कहीं किसी अमानवीय शक्ति के प्रहार से वह हाथ ताली बजाने को नहीं उठ पा रहा है। यदि देश के अन्दर ऐसे किसी भी हाथ पर प्रहार हो रहा हो तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उस अमानवीय शक्ति के दमन हेतु उचित कदम उठाकर देश के सभी हाथ सुरक्षित करे जिससे वह हाथ देश के विकास और समृद्धि के लिए काम कर सके। किसान आन्दोलन में भी ऐसे किसी हाथ की शक्ति है तो उस हाथ के टुकड़े कर देश के अन्नदाताओं को सुरक्षित करें और यदि वहां केवल और केवल देश के किसान उपस्थित हैं तो सरकार यथोचित कदम उठाकर हर सम्भव प्रयास कर उन्हें घर भेजने का प्रबंध करे। कहीं ऐसा न हो किसी दमनकारी शक्ति के प्रभाव में उनके साथ कोई अनहोनी घटना हो जाए।   आज अन्नदाताओं की ऐसी कौन सी बात हो गई है जो कि सरकार नहीं मान पा रही है। क्या कोई ऐसी बात है जिसका संविधान में प्रावधान नहीं है ? यदि ऐसा है तो उसका भी प्रावधान बनाया जाय। देश के संविधान की कानून व्यवस्था में समय-समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर नए नियमों को जोड़ा जाता रहा है या परिवर्तित किया जाता रहा है। यदि किसी एक विशेष समूह अनुसूचित जाति/ जनजाति के द्वारा सवर्णों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने पर उन्हें बिना जाँच गिरफ्तार करने के लिए कानून बनाया जा सकता है तो देश के किसानों की माँग के लिए क्यों नहीं ? बिना जाँच गिरफ्तार करना शायद भगवान के यहां की भी कोई न्याय प्रक्रिया नहीं है। शेक्सपीयर ने लिखा है कि यदि राजा के न्याय में दया का मिश्रण हो तो वह भगवान का न्याय हो जाता है। एक विशेष समूह के लिए यदि सरकार सवर्णो के लिए इतना बड़ा अन्याय करने लिए कदम उठा सकती है तो फिर देश के अन्नदाताओं के लिए कोई बड़ा कदम क्यों नहीं उठा रही है ? आखिर इस मुद्दे पर क्यों मौन है सरकार ? आम जनता बस इतना चाहती है कि यदि वहां किसान हैं तो उन्हें आश्वस्त कर उनके घर भेजा जाए और यदि कोई देश की विघटनकारी शक्ति भी उपस्थित है तो उसका दमन किया जाय जिससे देश की सुरक्षा और अखण्डता पर कोई अंगुली न उठे। जय हिन्द! जय अखण्ड भारत! वन्देमातरम!


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